माना ज़रा सा नटखट है वो
निराली उसकी अदाये हैं,
देखो ना कान्हा में मेरे
कितने गुण समाये हैं…
कृष्ण-कन्हैया, मुरली बजैया
माखन चोर कहलावे है,
उठा के एक उंगल पे अपनी
पर्वत गोवर्धन दिखलावे है…
गोपियो संग रास रचावे
घाट-घाट पे घुमे है,
ले मदमस्त ग्वालो की टोली
गोकुल-गलियन में झुमे है…
जीवन जीने के सही मायने
गीता-उपदेश में सिखाये हैं,
देखो ना कान्हा में मेरे
कितने गुण समाये हैं…